विद्यालय विकास हेतु सामुदायिक सहभागिता आवश्यक- डॉ. मनोज वार्ष्णेय
विद्यालय विकास, सामुदायिक सहभागिता, डॉ. मनोज वार्ष्णेय

सामुदायिक सहभागिता
विद्यालय विकास हेतु सामुदायिक सहभागिता अनिवार्य – डॉ. मनोज वार्ष्णेय
एस. शेरवानी (ब्यूरो चीफ)-
आगरा। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIET) आगरा में चल रहे एकीकृत प्रशिक्षण मॉड्यूल ‘संपूर्ण’ पर आधारित पांच दिवसीय शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन गरिमामय माहौल में हुआ। यह प्रशिक्षण विकास खंड खेरागढ़ के 95 प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों के लिए आयोजित किया गया था।
समापन सत्र में प्रशिक्षण प्रभारी डॉ. मनोज कुमार वार्ष्णेय ने जोर देकर कहा कि “विद्यालय विकास एक अकेले शिक्षक का कार्य नहीं, बल्कि समुदाय की सहभागिता से ही संभव है।” उन्होंने विद्यालय विकास योजना (SDP) के विभिन्न पहलुओं को सरल और व्यवहारिक उदाहरणों से समझाया, जिससे शिक्षकों को यह स्पष्ट हो सके कि वे किस तरह अभिभावकों, स्थानीय पंचायतों और अन्य समुदायिक इकाइयों को विद्यालय की उन्नति से जोड़ सकते हैं।
प्रशिक्षण का उद्देश्य: निपुण भारत मिशन की दिशा में प्रभावी कदम
कार्यक्रम का उद्देश्य केवल अकादमिक जानकारी देना नहीं था, बल्कि शिक्षकों को व्यवहारिक समस्याओं का समाधान निकालने की रणनीति से लैस करना था। निपुण भारत मिशन की दिशा में यह प्रशिक्षण एक मजबूत कड़ी के रूप में उभरा, जहां शिक्षण विधियों, साइबर सुरक्षा, आपदा प्रबंधन और विद्यालयी परिवेश पर विशेष बल दिया गया।
प्रथम सत्र: विद्यालयी वातावरण के विविध आयाम
प्रशिक्षण के प्रथम सत्र का संचालन नोडल प्रभारी पुष्पेंद्र सिंह ने किया। उन्होंने ‘विद्यालयी वातावरण’ के विभिन्न पक्षों को उजागर किया। उन्होंने बताया कि विद्यालय केवल एक पढ़ाई-लिखाई की जगह नहीं, बल्कि एक ऐसा वातावरण है जहां बच्चे जीवन के लिए तैयार होते हैं। इसलिए एक सकारात्मक, प्रेरणादायक और सुरक्षित माहौल देना शिक्षक की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।
द्वितीय व तृतीय सत्र: आपदा प्रबंधन और यातायात शिक्षा पर ध्यान
नोडल प्रभारी संजीव कुमार सत्यार्थी ने प्रशिक्षण के दूसरे और तीसरे सत्र में आपदा प्रबंधन, यातायात नियमों, और बच्चों को यातायात के प्रति जागरूक करने के तरीकों पर व्याख्यान दिया।
उन्होंने बताया कि विद्यालयों को ‘आपदा के लिए तैयार इकाई’ बनाना समय की मांग है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यातायात नियमों की शिक्षा बच्चों को बाल्यावस्था से दी जाए तो वे जिम्मेदार नागरिक बनेंगे।
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अंतिम सत्र: साइबर सुरक्षा और सामुदायिक भागीदारी
प्रशिक्षण का चौथा और अंतिम सत्र डॉ. मनोज कुमार वार्ष्णेय के निर्देशन में हुआ। उन्होंने साइबर सुरक्षा जैसे ज्वलंत विषय पर चर्चा करते हुए बताया कि अब समय आ गया है कि शिक्षक स्वयं डिजिटल रूप से सशक्त और जागरूक बनें, ताकि वे बच्चों और अभिभावकों को साइबर अपराध से बचाने की दिशा में मार्गदर्शन कर सकें।
इसके बाद उन्होंने विद्यालय विकास योजना (School Development Plan) को रेखांकित करते हुए बताया कि यदि हम सामुदायिक सहभागिता को केंद्र में रखकर योजनाएं बनाएं, तो विद्यालयों में संसाधनों की कमी, आधारभूत ढांचे की समस्याएं और शिक्षा की गुणवत्ता में स्वतः सुधार आ सकता है।
उन्होंने कहा –
“जब गांव का हर अभिभावक यह समझने लगेगा कि यह विद्यालय उनके अपने बच्चों का भविष्य गढ़ रहा है, तब स्वयं ही परिवर्तन शुरू हो जाएगा।”
प्रशिक्षण प्रमाण-पत्र वितरण और सहभागियों की सराहना
समापन के अवसर पर प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी 95 प्रतिभागी शिक्षकों को प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए। कार्यक्रम में डायट की प्राचार्य पुष्पा कुमारी, प्रवक्ता अनिल कुमार, यशवीर सिंह, हिमांशु सिंह, कल्पना सिन्हा, डॉ. प्रज्ञा शर्मा, लक्ष्मी शर्मा, अबु मोहम्मद आसिफ, डॉ. दिलीप गुप्ता सहित पूरे डायट स्टाफ ने उपस्थिति दर्ज करवाई।
प्राचार्य पुष्पा कुमारी ने अपने संदेश में कहा कि –
“आपने जिस मनोयोग से यहां प्रशिक्षण प्राप्त किया है, अब वही मनोयोग अपने विद्यालयों में दिखाना होगा। प्रशिक्षण का असली उद्देश्य तभी सफल होगा, जब यह व्यवहार में उतरकर बच्चों के विकास में सहायक बने।”
शिक्षकों की प्रतिक्रिया: मिला व्यावहारिक अनुभव
प्रशिक्षकों ने बताया कि उन्हें सिर्फ लेक्चर नहीं मिले, बल्कि हर सत्र में व्यावहारिक उदाहरणों, ग्रुप एक्टिविटी, केस स्टडी और प्रश्नोत्तर के माध्यम से विषयों को बेहतर ढंग से समझाया गया।
खेरागढ़ के एक शिक्षक ने कहा –
“पहली बार हमने महसूस किया कि प्रशिक्षण केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि एक सीखने का अवसर भी हो सकता है।”
निष्कर्ष: शिक्षक ही नहीं, समुदाय भी बनेगा बदलाव का वाहक
यह प्रशिक्षण सिर्फ शिक्षकों को दक्ष बनाने का प्रयास नहीं था, बल्कि उन्हें विद्यालय विकास के लिए सामुदायिक नेतृत्वकर्ता के रूप में तैयार करना भी था।
डॉ. मनोज वार्ष्णेय की बातें न केवल विचारोत्तेजक थीं, बल्कि नीतिगत क्रियान्वयन के लिए भी प्रेरक रहीं। प्रशिक्षण के बाद यह साफ हुआ कि अगर शिक्षक, प्रशासन और समाज मिलकर प्रयास करें, तो कोई भी विद्यालय पिछड़ा नहीं रह सकता।
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