
वर्ल्ड लिज़र्ड डे पर आगरा की बड़ी उपलब्धि – 6 महीनों में 50 मॉनिटर लिज़र्ड का सफल रेस्क्यू, सह-अस्तित्व का संदेश
ब्यूरो चीफ़ – एस. शेरवानी-
आगरा |
14 अगस्त, जिसे पूरी दुनिया वर्ल्ड लिज़र्ड डे के रूप में मनाती है, इस बार आगरा के लिए एक खास अवसर लेकर आया।
आगरा स्थित वाइल्डलाइफ एसओएस रैपिड रिस्पांस यूनिट ने पिछले 6 महीनों में लगभग 50 बंगाल मॉनिटर लिज़र्ड (गोह) को बचाकर न सिर्फ जानवरों की जिंदगी सुरक्षित की, बल्कि लोगों में वन्यजीव संरक्षण और सह-अस्तित्व की भावना भी मजबूत की।
मॉनिटर लिज़र्ड – गलतफहमी का शिकार, लेकिन प्रकृति के रक्षक
बंगाल मॉनिटर लिज़र्ड भारत के सबसे बड़े और गैर-विषैले सरीसृपों में से एक है।
हालांकि वे इंसानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन अक्सर गलतफहमी, डर और अंधविश्वास के कारण इन पर हमला कर दिया जाता है।
ये छिपकलियाँ कृन्तकों (rats) की आबादी को नियंत्रित करके खेतों और घरों को सुरक्षित रखती हैं।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में शामिल होने के कारण इन्हें सर्वोच्च कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।
फिर भी, जागरूकता की कमी इन्हें अक्सर खतरे में डाल देती है।
6 महीने, 50 रेस्क्यू – कैसे हुआ यह संभव
वाइल्डलाइफ एसओएस की रैपिड रिस्पांस यूनिट को इस साल के शुरुआती महीनों से ही स्कूलों, हाउसिंग सोसाइटी, सरकारी कार्यालयों, बगीचों और यहां तक कि ईंटों के ढेर के नीचे से मॉनिटर लिज़र्ड मिलने की कॉल्स मिलने लगीं।
मानसून में स्थिति और गंभीर हो गई, क्योंकि भारी बारिश से बचने के लिए ये छिपकलियाँ शहर और गांव के बस्तियों की तरफ आने लगीं।
नतीजतन, केवल जुलाई और अगस्त में ही कॉल वॉल्यूम कई गुना बढ़ गया।
रैपिड रिस्पांस टीम ने तुरंत मौके पर पहुंचकर
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सुरक्षित पकड़ (safe capture)
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घायल होने पर इलाज (medical care)
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और प्राकृतिक आवास में पुनः छोड़ना (release back to the wild)
जैसे कदम उठाए।
जागरूकता से आया बदलाव
पहले, मॉनिटर लिज़र्ड को देखकर लोग डर जाते थे और उन्हें मार देते थे।
लेकिन अब, वाइल्डलाइफ एसओएस के लगातार जागरूकता अभियानों के कारण लोगों की सोच में बदलाव आया है।
अब, अधिकांश नागरिक इन्हें देखकर
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डरने के बजाय हेल्पलाइन पर कॉल करते हैं
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बच्चों और पड़ोसियों को इनके बारे में सही जानकारी देते हैं
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इनके महत्व को समझने लगे हैं
विशेषज्ञों की राय – यह सिर्फ रेस्क्यू नहीं, धारणाओं में बदलाव है
वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने कहा,
“मॉनिटर लिज़र्ड इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाती और कृन्तकों की आबादी को नियंत्रित रखने में अहम भूमिका निभाती है।
हर रेस्क्यू सिर्फ एक जान बचाना नहीं है, बल्कि यह लोगों की सोच बदलने और इंसान-प्रकृति के बीच सह-अस्तित्व बनाने का मौका है।”
वहीं, डायरेक्टर कंज़र्वेशन प्रोजेक्ट्स बैजूराज एम.वी. ने कहा,
“हर बार जब हमें मॉनिटर लिज़र्ड दिखने की कॉल मिलती है, वह सिर्फ रेस्क्यू नहीं होता, बल्कि एक नागरिक को वन्यजीव के बारे में जागरूक करने का अवसर होता है।”
मॉनिटर लिज़र्ड क्यों महत्वपूर्ण हैं
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कृन्तक नियंत्रण – चूहे और अन्य छोटे जानवरों की संख्या घटाते हैं।
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पर्यावरण संतुलन – खाद्य श्रृंखला का अहम हिस्सा हैं।
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जैव विविधता संरक्षण – प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत बनाए रखते हैं।
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अगर आपके आस-पास मॉनिटर लिज़र्ड दिखे तो क्या करें
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शांत रहें, इन्हें छेड़ें नहीं।
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दूरी बनाए रखें, पास जाकर फोटो या वीडियो बनाने की कोशिश न करें।
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तुरंत वाइल्डलाइफ हेल्पलाइन को सूचित करें।
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इन्हें खाना देने या पकड़ने की कोशिश न करें।
सह-अस्तित्व की ओर कदम
आगरा और आसपास के इलाकों में 50 मॉनिटर लिज़र्ड का सफल रेस्क्यू इस बात का संकेत है कि
जब प्रशासन, NGOs और जनता मिलकर काम करते हैं, तो वन्यजीव संरक्षण संभव है।
वाइल्डलाइफ एसओएस का यह प्रयास न सिर्फ आगरा बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल है।
आज जरूरत है कि हम प्रकृति के हर जीव को सम्मान और सुरक्षा दें, ताकि वे हमारे पर्यावरण का हिस्सा बने रहें।
निष्कर्ष
वर्ल्ड लिज़र्ड डे पर आगरा का यह अभियान बताता है कि जागरूकता, सही जानकारी और समय पर हस्तक्षेप से न सिर्फ जान बचाई जा सकती है, बल्कि इंसान और वन्यजीव के बीच भरोसा और संतुलन भी कायम किया जा सकता है।
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