शिक्षामित्रों का काला दिवस 25 जुलाई: वेतनमान और न्याय की माँग
"शिक्षामित्रों ने 25 जुलाई को काला दिवस के रूप में मनाकर दिंवगत साथियों को दी श्रद्धांजलि"

शिक्षामित्रों का काला दिवस 25 जुलाई: दिवंगत साथियों को दी श्रद्धांजलि, जिलाधिकारी को मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन
एस. शेरवानी (ब्यूरो चीफ़) –
25 जुलाई 2025
आगरा। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ ने 25 जुलाई को “काला दिवस 2025” के रूप में मनाकर दिवंगत शिक्षामित्र साथियों को श्रद्धांजलि दी और सरकार से अपने अधिकारों की मांग को एक बार फिर बुलंद किया। जिला अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह छौंकर के नेतृत्व में सैकड़ों शिक्षामित्रों ने शहीद स्मारक संजय प्लेस पर एकत्र होकर कैंडल मार्च, श्रद्धांजलि सभा और धरना प्रदर्शन किया।
इस अवसर पर सभी शिक्षामित्रों ने प्रदेश भर के विद्यालयों में काली पट्टी बांधकर शिक्षण कार्य कर प्रतीकात्मक विरोध दर्ज कराया। इस विरोध के माध्यम से शिक्षामित्रों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से उपजे असमंजस, सरकारी उदासीनता, और वर्षों से लंबित प्रशिक्षित वेतनमान की मांग को सामने लाया।
शिक्षामित्रों का दर्द: न्याय की प्रतीक्षा में खो दिए कई साथी
धरने के दौरान जिलाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह छौंकर ने कहा,
“आज का दिन शिक्षामित्रों के लिए सिर्फ विरोध का नहीं, एक गहरे दुख का प्रतीक है। सरकार की चुप्पी और उपेक्षा ने हमारे कई साथियों को असमय काल का ग्रास बना दिया। मानसिक अवसाद, ह्रदयाघात, आत्महत्या और इलाज के अभाव में कई शिक्षामित्रों की जान चली गई। हम उन्हें कभी नहीं भूल सकते।”
कार्यक्रम में हवन यज्ञ का आयोजन कर दिवंगत साथियों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई। साथ ही मोमबत्ती जलाकर मौन श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
जिलाधिकारी को मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन, प्रशिक्षित वेतनमान की माँग
धरना प्रदर्शन के पश्चात शिक्षामित्रों के प्रतिनिधिमंडल ने जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ज्ञापन सौंपा, जिसमें निम्नलिखित माँगें रखी गईं:
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शिक्षामित्रों को प्रशिक्षित वेतनमान प्रदान किया जाए।
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मृत शिक्षामित्रों के परिजनों को आर्थिक सहायता व सरकारी नौकरी मिले।
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सेवा शर्तों को स्थायी किया जाए व नियमितीकरण पर ठोस निर्णय लिया जाए।
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मानसिक व आर्थिक तनाव से जूझ रहे शिक्षामित्रों के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू की जाएं।
संघ के वरिष्ठ सदस्यों ने चेतावनी दी कि यदि सरकार जल्द कोई ठोस निर्णय नहीं लेती, तो यह आंदोलन राजधानी लखनऊ में आर-पार की लड़ाई में बदल जाएगा।
संघर्ष को लेकर नेतृत्व का सख्त रुख
संघ के जिला संरक्षक शिशुपाल सिंह चाहर ने स्पष्ट किया कि सरकार जब तक शिक्षामित्रों की मांगों को गंभीरता से नहीं लेती, आंदोलन थमने वाला नहीं है। उन्होंने कहा,
“हमने राज्य सरकार का हर स्तर पर सहयोग किया। शिक्षा की नींव को मज़बूत किया, गाँव-गाँव बच्चों को स्कूल लाए, मगर आज हमारी ही स्थिति सबसे खराब है। अब और चुप नहीं बैठेंगे।”
धरना स्थल पर मौजूद शिक्षामित्रों ने नारे लगाते हुए सरकार के प्रति नाराजगी जताई—
“शिक्षामित्रों का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान”, “प्रशिक्षित वेतनमान हमारा अधिकार है”, “शहीद साथियों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी।”
आंदोलन में जनपद के सभी ब्लॉकों से भारी भागीदारी
धरना प्रदर्शन में आगरा जनपद के सभी ब्लॉकों से बड़ी संख्या में शिक्षामित्र पहुंचे। इनमें प्रमुख रूप से शामिल थे:
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ब्लॉक अध्यक्ष खेरागढ़: रनवीर सिंह सिकरवार
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ब्लॉक अध्यक्ष फतेहपुर सीकरी: चौधरी विजय पाल सिंह
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ब्लॉक अध्यक्ष जगनेर: रघुवीर प्रसाद शर्मा
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संगठन मंत्री: रामपाल सिंह डिठौनियाँ
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वरिष्ठ उपाध्यक्ष: करतार यादव
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वरिष्ठ पदाधिकारी: हरिशंकर शर्मा, भूरी सिंह सोलंकी, अशोक कुमार, सत्यपाल सिंह जादौन
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महिला प्रतिनिधि: मनीषा यादव, गीता मिश्रा, अनुपम कटारा, सुनीता, बिमलेश, अर्चना शर्मा, अंजना शाक्य
इसके अलावा यशपाल सिंह कुशवाह, देवेश छौंकर, रनवीर भगौर, अनिल शास्त्री, दारासिंह सहित सैकड़ों शिक्षामित्र उपस्थित रहे। सभी ने एक स्वर में अपनी मांगों को दोहराते हुए संघर्ष को जारी रखने की शपथ ली।
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शिक्षामित्रों का योगदान और आज की स्थिति
शिक्षामित्रों को वर्ष 2001 से 2017 तक शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ माना गया। इनकी नियुक्ति गाँवों में शिक्षा को सशक्त बनाने और नामांकन बढ़ाने के उद्देश्य से हुई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के बाद इनकी स्थायी नियुक्तियाँ निरस्त हो गईं। उसके बाद से ही ये संविदा पर अल्प वेतन में कार्यरत हैं।
आज शिक्षामित्रों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है —
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वेतन बहुत कम,
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कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं,
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भविष्य अनिश्चित,
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और न्याय की लड़ाई अब तक अधूरी।
शिक्षामित्रों का काला दिवस 2025: आंदोलन का अगला पड़ाव?
धरना स्थल पर मौजूद शिक्षामित्रों का जोश और आंखों में अपने दिवंगत साथियों के लिए आँसू इस बात का संकेत थे कि अब वे लंबा इंतज़ार नहीं करने वाले। संघ ने स्पष्ट किया कि यदि सरकार शीघ्र निर्णय नहीं लेती, तो लखनऊ में अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया जाएगा।
इस बीच शिक्षक संगठनों और जनप्रतिनिधियों से भी अपील की गई है कि वे शिक्षामित्रों की आवाज़ को विधानसभा तक पहुँचाएं और उनके साथ न्याय हो।
निष्कर्ष
“शिक्षामित्रों का काला दिवस 2025” केवल एक विरोध नहीं, बल्कि वर्षों से अपने हक के लिए लड़ रहे हजारों शिक्षामित्रों के दर्द, संघर्ष और आत्मबल का प्रतीक है। सरकार से यही अपेक्षा है कि शिक्षामित्रों की पीड़ा को समझते हुए उनके लिए न्यायोचित निर्णय लिया जाए। ताकि आने वाली पीढ़ी यह कह सके कि शिक्षा के सच्चे सिपाहियों को उनका अधिकार आखिर मिल ही गया।
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