विद्यालय मर्जर के विरोध में ज्ञापन सौंपा, सांसद राजकुमार चाहर से शिक्षकों की अपील – स्कूल बंद न किए जाएं
सरकार द्वारा परिषदीय स्कूल मर्ज करने के विरोध में प्राथमिक शिक्षक संघ ने सांसद चाहर को सौंपा ज्ञापन

विद्यालय मर्जर के विरोध में ज्ञापन सौंपा, सांसद राजकुमार चाहर से शिक्षकों की अपील – स्कूल बंद न किए जाएं
एस. शेरवानी (ब्यूरो चीफ़) –
आगरा (ब्यूरो रिपोर्ट):
विद्यालय मर्जर के विरोध में ज्ञापन सौंपते हुए जिले के सैकड़ों शिक्षक आगरा के सांसद राजकुमार चाहर से मिले और केंद्र व राज्य सरकार से विद्यालयों को बंद करने की नीति पर पुनर्विचार की मांग की। इस अवसर पर उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ आगरा के जिला संयोजक चौधरी सुरजीत सिंह के नेतृत्व में शिक्षकों का प्रतिनिधिमंडल सांसद को ज्ञापन सौंपने पहुंचा।
शिक्षा के अधिकार कानून के विरुद्ध विद्यालय मर्जर की नीति
शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 व 2011 के तहत यह प्रावधान किया गया था कि हर 1 किलोमीटर की दूरी पर एक प्राथमिक विद्यालय और हर 3 किलोमीटर की दूरी पर एक जूनियर हाईस्कूल होना अनिवार्य होगा, जिससे शिक्षा हर बच्चे की पहुंच में हो। इसी नीति के तहत बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा गांव-गांव में विद्यालय खोले गए थे।
लेकिन वर्तमान में सरकार की ओर से “मर्जर” (एकीकरण) की प्रक्रिया चलाई जा रही है, जिसके अंतर्गत छोटे विद्यालयों को पास के बड़े विद्यालयों में मिला दिया जा रहा है। इसका सीधा असर गांव के गरीब और पिछड़े तबकों के बच्चों पर पड़ रहा है, जिनकी शिक्षा अब बाधित हो रही है।
विद्यालय मर्जर के विरोध में जनप्रतिनिधियों को सौंपे जा रहे ज्ञापन
उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में विद्यालय मर्जर के विरोध में ज्ञापन देने की श्रृंखला चल रही है। इसी कड़ी में आगरा जनपद के शिक्षकों ने सांसद राजकुमार चाहर को ज्ञापन सौंपा और निवेदन किया कि वे इस मामले को संसद और सरकार के समक्ष उठाएं।
चौधरी सुरजीत सिंह ने कहा कि यह नीति गरीब, लाचार, दिव्यांग और ग्रामीण बच्चों की शिक्षा के अधिकार को छीनने वाली है। बच्चों को दूर के स्कूलों में जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जहां तक पहुंचना उनके लिए व्यावहारिक नहीं है।
सैकड़ों शिक्षक शामिल, ब्लॉकों से आई सहभागिता
इस प्रदर्शनात्मक ज्ञापन कार्यक्रम में आगरा जिले के विभिन्न ब्लॉकों से आए सैकड़ों शिक्षकों और पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। इनमें महिला और पुरुष दोनों ही शिक्षकों की सहभागिता उल्लेखनीय रही। सभी ने एक सुर में कहा कि यह नीति जनभावनाओं के विरुद्ध है और इसका कड़ा विरोध किया जाएगा।
ज्ञापन सौंपने वाले प्रमुख शिक्षकों और पदाधिकारियों के नाम इस प्रकार हैं:
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बृजेश शुक्ला
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केके इंदौलिया
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हरिओम यादव
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लक्ष्मण सिंह
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अभय चौधरी
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प्रदीप यादव
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भोला सिंह यादव
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परमवीर सिंह
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पुनीत अरोड़ा
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डॉ. योगेश चाहर
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डॉ. सोनवीर चाहर
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मांगीलाल गुर्जर
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सुनील राणा
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अशोक शर्मा
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राशिद अहमद
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अबनेश
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लोकेन्द्र मुदगल
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जुगेन्द्र चाहर
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प्रदीप भदौरिया
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गजराज गुर्जर
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उषा चाहर
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प्रशान्त राजपूत
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डॉ. जगपाल
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बलवीर
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चतर सिंह
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अशोक जादौन
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राजेश शर्मा
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कमल सिंह
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किशन बाबू गुप्ता
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अरविंद परिहार
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सीता वर्मा
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राजीव सोलंकी
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बल्देव सिकरवार
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विजयपाल नरवार
विद्यालय मर्जर नीति से उपजे प्रमुख संकट
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बच्चों की शिक्षा बाधित:
छोटे विद्यालय बंद होने के कारण बच्चों को अधिक दूरी तक जाना पड़ता है, जिससे विशेष रूप से बालिकाओं और दिव्यांग छात्रों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। -
अभिभावकों में रोष:
स्थानीय लोगों का मानना है कि सरकार ने जब स्कूल खोलने के लिए भूमि और संसाधन लिए थे, तब बच्चों को बेहतर भविष्य का वादा किया गया था। अब मर्जर की नीति से यह जनविश्वास टूट रहा है। -
शिक्षकों की नौकरी पर संकट नहीं, मगर मनोबल पर असर:
शिक्षकों का यह भी कहना है कि इस प्रक्रिया से उनकी नियुक्ति पर तो संकट नहीं, लेकिन गांवों में शिक्षा का मूल ढांचा कमजोर हो रहा है, जो कि भविष्य के लिए ठीक नहीं है। -
स्कूल भवनों का भविष्य क्या होगा?
जो भवन अब उपयोग में नहीं आएंगे, उनका रखरखाव नहीं होगा और वे जर्जर होते चले जाएंगे। यह सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी है।
सांसद ने दिया आश्वासन
सांसद राजकुमार चाहर ने ज्ञापन लेने के बाद शिक्षकों को आश्वासन दिया कि वे इस मामले को सरकार के समक्ष रखेंगे और नीति पर पुनर्विचार का आग्रह करेंगे। उन्होंने कहा कि वह जनहित में हर संभव प्रयास करेंगे ताकि बच्चों की शिक्षा बाधित न हो।
शिक्षकों की चेतावनी – जारी रहेगा आंदोलन
संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि यदि सरकार ने जल्द कोई सकारात्मक निर्णय नहीं लिया, तो प्रदेशव्यापी आंदोलन किया जाएगा। वे सभी शिक्षक संगठनों को साथ लेकर विरोध को और तेज करेंगे।
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निष्कर्ष
विद्यालय मर्जर के विरोध में ज्ञापन सिर्फ एक प्रशासनिक दस्तावेज नहीं, बल्कि हजारों ग्रामीण बच्चों और अभिभावकों की आवाज है। यह नीति जहां एक ओर सरकार की व्यय-कटौती की सोच को दर्शाती है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण शिक्षा प्रणाली की रीढ़ को कमजोर करती है। अब देखना यह है कि सरकार इस विरोध को किस रूप में लेती है – जनभावनाओं का सम्मान करते हुए नीति में बदलाव करती है या आंदोलन के दबाव में आने का इंतजार करती है।