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राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण 2025 के दिशा निर्देश में बैठक का हुआ आयोजन

राष्ट्रीय मध्यस्थता अभियान 2025: आगरा न्यायालयों में सुलह संस्कृति को मिल रही नई दिशा

राष्ट्रीय मध्यस्थता अभियान के तहत आगरा में न्यायिक अधिकारियों की बैठक, आपसी सुलह को मिलेगा बढ़ावा

एस. शेरवानी (ब्यूरो चीफ़) –

आगरा, 18 जुलाई 2025

देशभर में चल रहे राष्ट्रीय मध्यस्थता अभियान के अंतर्गत आगरा जनपद में 17 जुलाई 2025 को एक महत्वपूर्ण पहल की गई। इस दिन जनपद न्यायाधीश श्री संजय कुमार मलिक के मार्गदर्शन में सभी न्यायिक मजिस्ट्रेटों की उपस्थिति में एक सामूहिक बैठक का आयोजन हुआ, जिसका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में मध्यस्थता की भूमिका को मजबूत करना और अधिकाधिक वादों को आपसी सहमति से निस्तारित करना रहा।

बैठक का आयोजन – मध्यस्थता को प्रोत्साहन देने की दिशा में बड़ा कदम

यह बैठक राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नई दिल्ली और उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, लखनऊ के निर्देशों के अनुपालन में बुलाई गई थी। बैठक की अध्यक्षता डॉ. दिव्यानंद द्विवेदी, अपर जिला जज एवं सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण आगरा ने की।

उन्होंने इस बैठक में उपस्थित सभी न्यायिक अधिकारियों को मध्यस्थता की प्रक्रिया के महत्व, लाभ और संवेदनशीलता के विषय में जानकारी दी। साथ ही, न्यायिक प्रणाली में बढ़ते वादों के बोझ को कम करने के लिए मध्यस्थता को एक सशक्त विकल्प के रूप में अपनाने पर जोर दिया।

न्यायिक अधिकारियों की सक्रिय भागीदारी

इस महत्वपूर्ण बैठक में जनपद आगरा के प्रमुख न्यायिक अधिकारी उपस्थित रहे, जिनमें शामिल थे:

  • लाल बहादुर गौण – लघुवाद न्यायालय

  • मृत्युंजय कुमार श्रीवास्तव – मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट

  • मोहम्मद साबिर अली – अपर सिविल जज (सीनियर डिवीजन)

  • अचल प्रताप सिंह – विशेष मुख्य नायक मजिस्ट्रेट

  • तथा अन्य सभी न्यायालयों के न्यायिक मजिस्ट्रेटगण

इन सभी अधिकारियों ने मध्यस्थता अभियान को सफल बनाने की दिशा में अपने सुझाव, अनुभव और विचार साझा किए, जिससे आने वाले दिनों में मध्यस्थता प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

आपसी सुलह: न्यायिक प्रक्रिया का संवेदनशील विकल्प

बैठक में सभी अधिकारियों को यह भी अवगत कराया गया कि मध्यस्थता के ज़रिए वादों का निस्तारण न केवल त्वरित होता है, बल्कि यह प्रक्रिया न्यायालय के लिए समय और संसाधनों की भी बचत करती है। सबसे अहम बात यह कि यह प्रक्रिया वादकारियों के बीच कटुता को कम कर समझौते की भावना को बढ़ावा देती है।

अधिकारियों को यह निर्देश भी दिए गए कि वे ऐसे वाद जिनमें आपसी सहमति की संभावनाएं अधिक हों, उन्हें प्राथमिकता से मध्यस्थता हेतु संदर्भित करें। साथ ही वादकारियों को भी इस प्रक्रिया के प्रति प्रेरित और संवेदनशील किया जाए।

मीडिया से सहयोग का आग्रह: जन-जागरूकता है आवश्यक

बैठक में इस बात पर भी विशेष बल दिया गया कि प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी इस अभियान में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, आगरा की ओर से मीडिया से आग्रह किया गया कि राष्ट्रीय मध्यस्थता अभियान के प्रचार-प्रसार में सहयोग करें, ताकि समाज के हर वर्ग तक यह संदेश पहुँचे कि न्याय अब संघर्ष नहीं, समझौते से भी संभव है।

इससे आम जनता को यह जानकारी मिल सकेगी कि अब वे अपने विवादों का समाधान लंबी अदालती प्रक्रिया के बिना, शांति और आपसी समझौते से करा सकते हैं।

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राष्ट्रीय मध्यस्थता अभियान – न्याय को सरल बनाने की पहल

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा चलाया जा रहा यह राष्ट्रीय मध्यस्थता अभियान वास्तव में न्याय प्रक्रिया के लोकतंत्रीकरण का एक अभूतपूर्व प्रयास है। इसका उद्देश्य लोगों को किफायती, त्वरित और सहज न्याय प्रदान करना है। खासतौर पर ऐसे वाद जो पारिवारिक, संपत्ति, व्यावसायिक विवाद, और उपभोक्ता संबंधी मुद्दों से जुड़े होते हैं, उन्हें मध्यस्थता के ज़रिए सुलझाना अधिक व्यावहारिक और शांतिपूर्ण तरीका है।

मध्यस्थता के फायदे – आंकड़ों में झलक

  • समय की बचत: मध्यस्थता के ज़रिए मामले औसतन 3 से 6 महीनों में सुलझ जाते हैं, जबकि सामान्य अदालती प्रक्रिया में वर्षों लग सकते हैं।

  • खर्च में कमी: इसमें वादकारियों को वकील, स्टांप ड्यूटी और अन्य खर्चों की आवश्यकता नहीं होती।

  • समझौता आधारित समाधान: दोनों पक्षों को संतुष्ट करने वाला हल निकलता है।

  • रिश्तों की रक्षा: खासकर पारिवारिक मामलों में रिश्तों में कटुता नहीं आती।

न्यायिक तंत्र में नई ऊर्जा

डॉ. दिव्यानंद द्विवेदी ने कहा, “आज का यह संवादात्मक आयोजन केवल एक बैठक नहीं, बल्कि न्यायिक सुधार की दिशा में एक संवेदनशील और दूरगामी कदम है। मध्यस्थता न केवल न्याय को जन-जन तक पहुँचाती है, बल्कि यह समाज में शांति और सामंजस्य की भावना को भी सुदृढ़ करती है।

निष्कर्ष:

राष्ट्रीय मध्यस्थता अभियान के अंतर्गत आगरा में आयोजित यह बैठक स्पष्ट करती है कि अब न्याय केवल अदालत की चारदीवारी तक सीमित नहीं, बल्कि आपसी संवाद, सुलह और समझौते के रास्ते भी खुल गए हैं।
जनपद न्यायालयों द्वारा इस अभियान को सफल बनाने के लिए उठाए गए कदम निश्चित रूप से वादकारियों में विश्वास बढ़ाएंगे और न्यायिक व्यवस्था को जमीनी स्तर पर और अधिक प्रभावी बनाएंगे।

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