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प्राथमिक विद्यालय में रक्षाबंधन का उल्लासपूर्ण आयोजन

रक्षाबंधन, प्राथमिक विद्यालय, उल्लासपूर्ण आयोजन

प्राथमिक विद्यालय में रक्षाबंधन का पर्व प्रेम, परंपरा और भाईचारे के साथ मनाया गया

 

एस. शेरवानी (ब्यूरो चीफ़)-

खेरागढ़, आगरा – 08 अगस्त 2025

स्थान: प्राथमिक विद्यालय कछपुरा सरेंडा, खेरागढ़ ब्लॉक, आगरा

भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक पर्व रक्षाबंधन को आगरा के खेरागढ़ ब्लॉक स्थित प्राथमिक विद्यालय कछपुरा सरेंडा में बड़े उत्साह, उल्लास और सजीव पारंपरिक माहौल में मनाया गया। स्कूल परिसर रक्षाबंधन के रंगों और भावनाओं से सराबोर हो गया।

रक्षाबंधन: बच्चों ने सीखा भाई-बहन के रिश्ते का महत्व

विद्यालय में जैसे ही सुबह की प्रार्थना सभा समाप्त हुई, छात्र-छात्राओं के चेहरों पर खास चमक दिखने लगी। बहनों ने राखियों की थाल सजा रखी थी, और भाई तिलक व मिठाई की प्रतीक्षा में मुस्कुरा रहे थे। स्कूल के इंचार्ज प्रधानाध्यापक डॉ. सतीश कुमार ने रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत करते हुए कहा:

“रक्षाबंधन केवल एक पर्व नहीं, बल्कि संस्कारों, प्रेम और सुरक्षा के बंधन का जीवंत प्रतीक है। यह बच्चों को बचपन से ही परिवार, रिश्तों और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का एक अवसर है।”

उन्होंने आगे बताया कि यह पर्व भाई-बहन के बीच आपसी प्यार, स्नेह, रक्षा और सम्मान को गहराई से सिखाता है। बच्चों में इन मूल्यों को विकसित करना आज के समय में नितांत आवश्यक है।

शिक्षकों ने बच्चों को रक्षाबंधन का सांस्कृतिक महत्व बताया

इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षकों ने रक्षाबंधन के ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर बच्चों से संवाद किया।

शिक्षक राकेश कुमार ने कहा:

“रक्षाबंधन त्योहार न केवल बहन द्वारा भाई को राखी बांधने तक सीमित है, बल्कि यह भाई के द्वारा बहन को जीवनभर सुरक्षा और सम्मान देने का वचन है। यह पर्व बच्चों में भावनात्मक जुड़ाव, ज़िम्मेदारी और त्याग की भावना पैदा करता है।”

शिक्षक मोहित वर्मा ने इस अवसर पर बच्चों को रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ प्रसिद्ध पौराणिक कथाएं सुनाईं। इनमें श्रीकृष्ण और द्रौपदी, रानी कर्णावती और हुमायूं, यम और यमुनाजी की कथाएं शामिल थीं, जो बच्चों को भारतीय संस्कृति की गहराई से रूबरू कराती हैं।

उन्होंने कहा:

“रक्षाबंधन बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ने का अनूठा अवसर है। इससे वे न केवल भारतीय परंपराओं को जान पाते हैं, बल्कि उनमें संवेदनशीलता, समर्पण और रिश्तों की कद्र करने की भावना भी जन्म लेती है।”

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राखी बांधकर छात्रों ने निभाई भाई-बहन की परंपरा

बच्चों में उत्साह अपने चरम पर था। छात्राओं ने सुंदर-सजावटी राखियां अपने भाई समान सहपाठियों की कलाई पर बांधीं। पहले उन्हें तिलक लगाया गया और फिर राखी बांधते हुए उनकी लंबी उम्र, सफलता और सुरक्षा की कामना की गई।

छात्रों ने भी अपनी बहनों को स्नेहपूर्वक उपहार व रक्षा का वचन दिया। यह दृश्य न केवल भावनात्मक था, बल्कि यह विद्यालय परिसर को मानो एक बड़े परिवार में परिवर्तित कर गया।

मिठाई वितरण और सामूहिक उत्सव का समापन

राखी बांधने की रस्म के बाद सभी बच्चों को मिठाई बांटी गई। बच्चों ने साथ मिलकर मिठाइयां खाईं और रक्षाबंधन का पर्व भाईचारे और हर्षोल्लास के साथ मनाया।

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शिक्षकों ने बच्चों को यह भी बताया कि भारत विविधताओं वाला देश है, और ऐसे त्योहार ही हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को जीवित रखते हैं। रक्षाबंधन भी ऐसा ही एक पर्व है जो भाई-बहन के रिश्तों के माध्यम से सामाजिक सौहार्द और परिवार की भावना को मजबूत करता है।

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बच्चों में संस्कार, प्रेम और सुरक्षा की भावना विकसित

विद्यालय के इस आयोजन का मूल उद्देश्य बच्चों में केवल पर्व की जानकारी देना ही नहीं था, बल्कि उन्हें जीवन मूल्यों, सांस्कृतिक पहचान और भावनात्मक विकास की शिक्षा देना भी था।

प्रधानाध्यापक डॉ. सतीश कुमार ने समापन के दौरान कहा:

“आज जब परिवार और रिश्ते बदलते सामाजिक ढांचे में संघर्ष कर रहे हैं, ऐसे में इस प्रकार के आयोजन बच्चों को संवेदनशील, जिम्मेदार और संस्कारी नागरिक बनने की दिशा में प्रेरित करते हैं।”

रक्षाबंधन का शैक्षिक दृष्टिकोण से महत्व

रक्षाबंधन जैसे त्योहार विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। यह आयोजन नैतिक शिक्षा, मूल्यों का अभ्यास, टीमवर्क, सामाजिक समरसता और रचनात्मकता का अद्भुत उदाहरण था।

बच्चों ने खुद राखियां बनाई, थाल सजाए, कार्यक्रम प्रस्तुत किए, और अपने स्तर पर यह जाना कि संस्कृति से जुड़ना कितना सहज और जरूरी है।

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सांस्कृतिक शिक्षा: पाठ्यक्रम से परे सीखने की दिशा

विद्यालय में जब शिक्षा केवल किताबों तक सीमित न रहकर जीवनमूल्यों तक पहुंचती है, तो समाज में नैतिकता, करुणा और सह-अस्तित्व जैसी भावनाओं का विस्तार होता है।

रक्षाबंधन जैसे आयोजन इस दिशा में एक सशक्त पहल हैं, जो बच्चों को भविष्य में संस्कारवान और उत्तरदायी नागरिक बनाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

निष्कर्ष: शिक्षा और संस्कृति का सुंदर संगम

खेरागढ़ के प्राथमिक विद्यालय कछपुरा सरेंडा में रक्षाबंधन का यह आयोजन केवल एक पर्व न रहकर एक शिक्षात्मक, भावनात्मक और सामाजिक अनुभव बन गया। बच्चों ने जहां भारतीय संस्कृति से जुड़ाव महसूस किया, वहीं उन्होंने भाई-बहन के रिश्ते की अहमियत को भी गहराई से समझा।

इस तरह के आयोजन हर विद्यालय में होने चाहिए ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास संभव हो सके। यह आयोजन बच्चों के मन, मस्तिष्क और आत्मा तीनों को छूने वाला रहा।

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