AGRA- विद्यालय मर्जर के विरोध में गरजा शिक्षक संघ, जनप्रतिनिधियों को सौंपा ज्ञापन
विद्यालयों के मर्जर के मुद्दे पर प्राथमिक शिक्षक संघ ने जनप्रतिनिधियों को दिया ज्ञापन

आगरा। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जा रहे विद्यालय मर्जर अभियान के विरोध में प्रदेश भर के शिक्षकों में आक्रोश है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ आगरा इकाई ने “विद्यालय मर्जर विरोध उत्तर प्रदेश शिक्षक संघ” अभियान के तहत जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपा और नीति के खिलाफ जोरदार विरोध दर्ज कराया। इस अभियान का नेतृत्व जिला संयोजक चौधरी सुरजीत सिंह ने किया।
ज्ञापन विधायक डॉ. धर्मपाल सिंह, एमएलसी विजय शिवहरे और भाजपा जिला अध्यक्ष प्रशांत पौनिया को सौंपा गया। संघ का कहना है कि जबरन किए जा रहे विद्यालयों के विलय से न केवल शिक्षकों के पदों पर संकट खड़ा होगा, बल्कि विद्यालयों में कार्यरत रसोइयों की भी रोज़ी-रोटी छिन जाएगी।
विद्यालय मर्जर योजना से शिक्षक और छात्रों में असंतोष
बेसिक शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के तहत 50 से कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों को पास के अन्य विद्यालयों में विलय किया जा रहा है। यही नहीं, 100 से कम छात्र संख्या वाले उच्च प्राथमिक विद्यालयों और 150 से कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत प्रधानाध्यापकों को सरप्लस घोषित किया जा रहा है।
हालांकि शासन ने यह शर्त रखी है कि विद्यालय मर्जर की प्रक्रिया विद्यालय प्रबंधन समिति और ग्राम प्रधान की सहमति से ही पूरी होगी, लेकिन शिक्षकों का आरोप है कि वास्तविकता इसके उलट है। कई स्थानों पर ग्राम प्रधान, समिति और शिक्षक विरोध के बावजूद स्कूलों का मर्जर किया जा रहा है, जिससे स्कूलों की स्थानीय पहचान, बच्चों की पढ़ाई और समुदाय की भागीदारी पर असर पड़ रहा है।
शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ेगा असर: शिक्षक संघ
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ का कहना है कि स्कूलों का जबरन मर्ज किया जाना न केवल शिक्षकों की नौकरियों को संकट में डाल रहा है, बल्कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
शिक्षक संघ की मुख्य आपत्तियाँ:
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विद्यालय मर्जर के बाद कई शिक्षक पद स्वतः समाप्त हो जायेंगे।
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शिक्षकों की तैनाती की प्रक्रिया अव्यवस्थित हो जाएगी।
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मर्ज विद्यालयों तक पहुंचना छात्रों के लिए कठिन हो सकता है, जिससे ड्रॉपआउट बढ़ेंगे।
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विद्यालय में कार्यरत रसोइयों की नौकरी पर संकट आ गया है, जो पहले ही अल्प वेतन पर काम कर रही थीं।
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स्थानीय ग्रामीणों और विद्यालय प्रबंधन समिति की सहमति के बिना हो रहा निर्णय जनभावनाओं का अपमान है।
जनप्रतिनिधियों से की हस्तक्षेप की माँग
ज्ञापन सौंपते समय शिक्षक संघ ने जनप्रतिनिधियों से अपील की कि वे सरकार से इस नीति पर पुनः विचार करने की मांग करें।
संघ के नेताओं का कहना है कि यदि शासन ने विद्यालय मर्जर की नीति पर रोक नहीं लगाई, तो आने वाले समय में यह मुद्दा राज्यव्यापी आंदोलन का रूप ले सकता है।
जनप्रतिनिधियों से आग्रह किया गया कि वे विधानसभा और विधान परिषद में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाएं और शिक्षकों, छात्रों एवं रसोइयों के हितों की रक्षा करें।
विरोध प्रदर्शन में शामिल रहे शिक्षक नेताओं की सूची
इस विरोध ज्ञापन के अवसर पर चौधरी सुरजीत सिंह के साथ बड़ी संख्या में शिक्षक एवं संगठन से जुड़े पदाधिकारी उपस्थित रहे। इनमें प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
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केके इंदौलिया
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हरिओम यादव (जिला मंत्री)
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विजयपाल नरवार
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लक्ष्मण सिंह
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मनजीत सिंह
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जितेंद्र चौधरी
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राशिद अहमद
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डॉ. जगपाल
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बलवीर सिंह
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प्रशांत राजपूत
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बलदेव सिकरवार
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सुनील राणा
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पुनीत अरोड़ा
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दिगंबर सिंह
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करन धाकड़
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मांगीलाल गुर्जर
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परमवीर सिंह
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सीता वर्मा
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नारायण दत्त उपाध्याय
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के पी सिंह
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अरविंद
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अशोक शर्मा
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अबनेश कुमार
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चंद्रशेखर
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राजीव
इन सभी ने एक स्वर में विद्यालय मर्जर के फैसले को वापस लेने की मांग की।
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रसोइयों के सामने रोज़गार संकट
विद्यालय मर्जर योजना से सबसे अधिक प्रभावितों में एक वर्ग है – मिड-डे मील योजना के तहत कार्यरत रसोइए। संघ ने बताया कि मर्जर होने वाले विद्यालयों में काम कर रहीं हजारों गरीब रसोइयां अब बेरोजगार हो जाएंगी, क्योंकि मर्ज विद्यालयों में केवल एक ही रसोइया नियुक्त रहेगा।
इनमें अधिकांश महिलाएं हैं, जो पहले ही न्यूनतम मानदेय पर कार्यरत हैं और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। उनके लिए यह निर्णय सामाजिक और आर्थिक रूप से हानिकारक सिद्ध होगा।
शिक्षक संघ की आगामी रणनीति
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि यदि सरकार ने शिक्षक हित में इस फैसले को नहीं बदला, तो वे आगे और प्रभावशाली प्रदर्शन और आंदोलन की योजना बनाएंगे।
संघ का कहना है कि शिक्षकों की भूमिका केवल पढ़ाने की नहीं बल्कि समाज निर्माण की भी होती है और सरकार को उनके अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।
निष्कर्ष
“विद्यालय मर्जर विरोध उत्तर प्रदेश शिक्षक संघ” अभियान अब केवल एक संगठनात्मक मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह प्रदेश भर के शिक्षकों और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े अन्य वर्गों की गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
शिक्षकों, छात्रों, रसोइयों और ग्रामीणों की सामूहिक आवाज को नजरअंदाज करना एक सामाजिक असंतुलन को जन्म दे सकता है। इसलिए सरकार से अपेक्षा की जा रही है कि वह इस नीति पर पुनः विचार करे और ऐसा रास्ता निकाले जो सभी हितधारकों के लिए संतुलित एवं न्यायसंगत हो।